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NET jrf important questions | MCQ test | kahani | हिन्दी कहानी से जुड़े प्रश्न

 NET jrf important questions | MCQ test | kahani | हिन्दी कहानी से जुड़े प्रश्न  यह विडियो देखिए कितनी अच्छी जानकारी दी गई है। 

बदचलन बीवियों का द्वीप - कृष्ण बलदेव वैद

🥀🌼 बदचलन बीवियों का द्वीप - कृष्ण बलदेव वैद कृष्ण बलदेव वैद की बदचलन बीवियों का द्वीप (प्रकाशक: राजकमल प्रकाशन, 2002) हिंदी साहित्य में एक अनूठा और प्रयोगात्मक कहानी संग्रह है, जो सोमदेव रचित प्राचीन संस्कृत ग्रंथ कथासरित्सागर की चयनित कहानियों का आधुनिक और समकालीन संदर्भों में पुनर्लेखन प्रस्तुत करता है। वैद, जो अपनी मौलिक भाषाई शैली और गैर-पारंपरिक कथन के लिए जाने जाते हैं, इस संग्रह में प्राचीन कथाओं को नए ढंग से प्रस्तुत करते हैं, जो पाठक को चमत्कृत करने के साथ-साथ गहरे सामाजिक और मनोवैज्ञानिक प्रश्न उठाती हैं। __ ▪️बदचलन बीवियों का द्वीप में बलदेव कृष्ण वैद ने कथासरित्सागर की कहानियों को आधार बनाकर उन्हें आधुनिक परिप्रेक्ष्य में ढाला है। संग्रह की कहानियाँ, जैसे "कलिंगसेना और सोमप्रभा की विचित्र मित्रता", पारंपरिक कथाओं को समकालीन भाषा, संवेदनाओं और जीवन-छवियों से जोड़ती हैं। वैद की शैली में एक खास तरह का व्यंग्य, हास्य और मनोवैज्ञानिक गहराई है, जो पात्रों के व्यवहार और समाज के नैतिक ढांचे पर प्रश्न उठाती है। पुस्तक का शीर्षक ही अपने आप में एक व्यंग्यात्मक टिप्पणी है, ...

राघव और महतु की कहानी, हिन्दी कहानी, चन्द्र कुमार

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**राघव और महतु की कहानी** *बचपन की दोस्ती, समय का इम्तिहान* एक छोटे से गाँव में दो दोस्त रहते थे — राघव और महतु। दोनों बचपन के साथी थे। मिट्टी में खेलना, तालाब में नहाना, आम के पेड़ पर चढ़ना — हर खुशी और ग़म में एक-दूसरे का साथ निभाते थे। राघव का परिवार गाँव के सबसे अमीर लोगों में से था। उसके पिता ज़मींदार थे, शहरों में भी उनका कारोबार था। वहीं महतु का परिवार गरीब था, उसका पिता मज़दूरी करता था। लेकिन इन फर्कों का कभी उनकी दोस्ती पर असर नहीं पड़ा। समय बदला। राघव शहर पढ़ने चला गया — अच्छे स्कूल, बड़ी डिग्रियाँ, और फिर विदेश में नौकरी। धीरे-धीरे उसका जीवन बदल गया। उसने कारोबार शुरू किया और सफल बिजनेसमैन बन गया। उधर महतु गाँव में ही रहा। उसने अपने पिता के साथ खेतों में काम किया, कई बार पेट काटा, लेकिन कभी ईमान और मेहनत से पीछे नहीं हटा। गाँव में लोग उसे इज्जत से देखते थे, भले ही उसकी जेब खाली हो। सालों बाद राघव एक सामाजिक प्रोजेक्ट के सिलसिले में गाँव लौटा। वो चमचमाती गाड़ी से उतरा, पीछे लोग थे, कैमरे थे, पर दिल में एक खालीपन था। गाँव की गलियों से गुज़रते हुए उसकी नज़र एक पेड़ के नीचे बैठक...

जीवन के कुछ पल, चन्द्र कुमार, कहानी

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 जीवन के कुछ पल  नदी के किनारे एक छोटा सी झोपड़ी थी, जिसमें एक प्रेमी युगल रहते थे। उनके नाम थे राजेश और राजेश्वरी। वे दोनों एक दूसरे से बेहद प्यार करते थे और हमेशा साथ में रहना चाहते थे। एक सुंदर दिन, जब सूरज अपनी पूरी चमक के साथ चमक रहा था, राजेश और राजेश्वरी नदी के किनारे बैठे थे। वे दोनों एक दूसरे की आँखों में देख रहे थे और मुस्कुरा रहे थे। राजेश राजेश्वरी का हाथ पकड़ लिया और कहा, "राजेश्वरी, तुम मेरी जिंदगी की सबसे बड़ी खुशी हो। तुम बिना मेरी जिंदगी अधूरी है।" राजेश्वरी राजेश की आँखों में देखा और कहा, "राजेश, तुम भी मेरी जिंदगी की सबसे बड़ी खुशी हो। तुम बिना मेरी जिंदगी अधूरी है।" वे दोनों एक दूसरे को देखकर मुस्कुरा रहे थे और नदी के किनारे बैठे थे। तभी एक छोटा सा पक्षी उनके पास आया और उन्हें देखकर चहचहाने लगा। राजेश और राजेश्वरी ने उस पक्षी को देखा और मुस्कुरा दिए। वे दोनों एक दूसरे के साथ खुश थे और नदी के किनारे बैठे थे, जहां वे अपने जीवन की सबसे खूबसूरत पलों का आनंद ले रहे थे। राजेश और राजेश्वरी ने अपने प्यार को एक नई दिशा दी और अपने जीवन की नई शुरुआत की। वे ...

आदिकाल / प्रकरण 2 अपभ्रंश काव्य, रामचंद्र शुक्ल

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  आदिकाल / प्रकरण 2 अपभ्रंश काव्य जब से प्राकृत बोलचाल की भाषा न रह गई तभी से अपभ्रंश साहित्य का आविर्भाव समझना चाहिए। पहले जैसे 'गाथा' या 'गाहा' कहने से प्राकृत का बोध होता था वैसे ही पीछे 'दोहा' या 'दूहा' कहने से अपभ्रंश या लोकप्रचलित काव्यभाषा का बोध होने लगा। इस पुरानी प्रचलित काव्यभाषा में नीति, श्रृंगार, वीर आदि की कविताएँ तो चली ही आती थीं, जैन और बौद्ध धार्माचार्य अपने मतों की रक्षा और प्रचार के लिए भी इसमें उपदेश आदि की रचना करते थे। प्राकृत से बिगड़कर जो रूप बोलचाल की भाषा ने ग्रहण किया वह भी आगे चलकर कुछ पुराना पड़ गया और काव्य रचना के लिए रूढ़ हो गया। अपभ्रंश नाम उसी समय से चला। जब तक भाषा बोलचाल में थी तब तक वह भाषा या देशभाषा ही कहलाती रही, जबवह भी साहित्य की भाषा हो गई तब उसके लिए अपभ्रंश शब्द का व्यवहार होने लगा। भरत मुनि (विक्रम तीसरी शताब्दी) ने 'अपभ्रंश' नाम न देकर लोकभाषा को 'देशभाषा' ही कहा है। वररुचि के 'प्राकृतप्रकाश' में भी अपभ्रंश का उल्लेख नहीं है। अपभ्रंश नाम पहले पहल बलभी के राजा धारसेन द्वितीय के शिलाल...

आदिकाल, प्रकरण 1 रामचंद्र शुक्ल

आदिकाल / प्रकरण 1 सामान्य परिचय दोस्तों यहां पर पिछले पांच भागों के बाद की जानकारी दी गई है, अगर आप चाहते हैं कि पिछले पांच भाग भी पढ़ें तो निम्नलिखित शीर्षक पर जाए:- महत्वपूर्ण लिंक्स  हिन्दी साहित्य का इतिहास, रामचंद्र शुक्ल, भाग 01 हिन्दी साहित्य का इतिहास, रामचंद्र शुक्ल भाग 02 हिन्दी साहित्य का इतिहास, रामचंद्र शुक्ल भाग 03 हिन्दी साहित्य का इतिहास, रामचंद्र शुक्ल भाग 04 हिन्दी साहित्य का इतिहास, रामचंद्र शुक्ल, भाग 05 प्राकृत की अंतिम अपभ्रंश अवस्था से ही हिन्दी साहित्य का आविर्भाव माना जा सकता है। उस समय जैसे 'गाथा' कहने से प्राकृत का बोध होता था वैसे ही 'दोहा' या 'दूहा' कहने से अपभ्रंश या प्रचलित काव्यभाषा का पद्म समझा जाता था। अपभ्रंश या प्राकृताभास हिन्दी के पयों का सबसे पुराना पता तांत्रिक और योगमार्गी बौध्दों की सांप्रदायिक रचनाओं के भीतर विक्रम की सातवीं शताब्दी के अंतिम चरण में लगता है। मुंज और भोज के समय (संवत् 1050) के लगभग तो ऐसी अपभ्रंश या पुरानी हिन्दी का पूरा प्रचार शुद्ध साहित्य या काव्य रचनाओं में भी पाया जाता है। अतः हिन्दी साहित्य का आदिक...

हिन्दी साहित्य का इतिहास, रामचंद्र शुक्ल, भाग 05 , काल विभाजन

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 कालक्रम दोस्तों यहां पर पिछले चार भागों के बाद की जानकारी दी गई है, अगर आप चाहते हैं कि पिछले चार भाग भी पढ़ें तो निम्नलिखित शीर्षक पर जाए:- महत्वपूर्ण लिंक्स  हिन्दी साहित्य का इतिहास, रामचंद्र शुक्ल भाग 01 हिन्दी साहित्य का इतिहास, रामचंद्र शुक्ल, भाग 02 हिन्दी साहित्य का इतिहास, रामचंद्र शुक्ल, भाग 03 हिन्दी साहित्य का इतिहास, रामचंद्र शुक्ल, भाग 04 जबकि प्रत्येक देश का साहित्य वहाँ की जनता की चित्तवृत्ति का संचित प्रतिबिंब होता है, तब यह निश्चित है कि जनता की चित्तवृत्ति के परिवर्तन के साथ-साथ साहित्य के स्वरूप में भी परिवर्तन होता चला जाता है। आदि से अंत तक इन्हीं चित्तवृत्तियों की परंपरा को परखते हुए साहित्य परंपरा के साथ उनका सामंजस्य दिखाना ही 'साहित्य का इतिहास कहलाता है। जनता की चित्तवृत्ति बहुत कुछ राजनीतिक, सामाजिक, सांप्रदायिक तथा धार्मिक परिस्थिति के अनुसार होती है। अतः कारण स्वरूप इन परिस्थितियों का किंचित् दिग्दर्शन भी साथ ही साथ आवश्यक होता है। इस दृष्टि से हिंदी साहित्य का विवेचन करने में यह बात ध्यान में रखनी होगी कि किसी विशेष समय में लोगों में रुचिविशेष क...