my first poem


        उपहार 

मन में कुछ शैतानी सूझा,
आओ करें कुछ काम अनोखा,
घर से निकले गये बजार,
वहां खरीदा एक समान,
झटपट भागे घर को आए,
रस्ते में कुछ समय गंवाए,
भागा भागा घर को आया,
तब तक मां ने मुझे बुलाया,
कहां गया था अभी को आया,
क्या बताऊं कुछ समझ न आया,
फिर भी थोड़ा साहस जुटाया,
धीरे धीरे दिया जवाब
गया था लाने इक उपहार
मां कर देना मुझको माफ़ 

❤️ मैं और मेरी भांजी ❤️

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

हम एल के जी के बच्चे हैं।

हिन्दी साहित्य का इतिहास, रामचंद्र शुक्ल, भाग 05 , काल विभाजन