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हिन्दी साहित्य का इतिहास, रामचंद्र शुक्ल, भाग 04

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  हिन्दी साहित्य का इतिहास, रामचंद्र शुक्ल, भाग 04 दोस्तों यहां पर पिछले तीन भागों के बाद की जानकारी दी गई है, अगर आप चाहते हैं कि पिछले तीन भाग पढ़ें तो निम्नलिखित शीर्षक पर जाए:- महत्वपूर्ण लिंक्स  हिन्दी साहित्य का इतिहास, रामचंद्र शुक्ल, भाग 01 हिन्दी साहित्य का इतिहास, रामचंद्र शुक्ल, भाग 02 हिन्दी साहित्य का इतिहास, रामचंद्र शुक्ल, भाग 03 एक ही काल और एक ही कोटि की रचना के भीतर जहाँ भिन्न-भिन्न प्रकार की परंपराएँ चली हुई पाई गई हैं, वहाँ अलग-अलग शाखाएँ करके सामग्री का विभाग किया गया है। जैसे भक्तिकाल के भीतर पहले तो दो काव्यधाराएँ निर्गुण धारा और सगुण धाराएं निर्दिष्ट की गई हैं। फिर प्रत्येक धारा की दो-दो शाखाएँ स्पष्ट रूप से लक्षित हुई हैं निर्गुण धारा की ज्ञानाश्रयी और प्रेममार्गी (सूफी) शाखा तथा सगुण धारा की रामभक्ति और कृष्णभक्ति शाखा। इन धाराओं और शाखाओं की प्रतिष्ठा यों ही मनमाने ढंग पर नहीं की गई है। उनकी एक-दूसरे एक- से अलग करने वाली विशेषताएँ अच्छी तरह दिखाई भी गई हैं और देखते ही ध्यान में आ भी जाएँगी। रीतिकाल के भीतर रीतिबद्ध रचना की जो परंपरा चली है उसका उपविभ...

हिन्दी साहित्य का इतिहास, रामचंद्र शुक्ल, भाग 03

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हिन्दी साहित्य का इतिहास, रामचंद्र शुक्ल, भाग 03  दोस्तों यहां पर पिछले दो भागों के बाद की जानकारी दी गई है, अगर आप चाहते हैं कि पिछले दो भाग पढ़ें तो निम्नलिखित शीर्षक पर जाए:- हिन्दी साहित्य का इतिहास, रामचंद्र शुक्ल, भाग 01 हिन्दी साहित्य का इतिहास, रामचंद्र शुक्ल, भाग 02 इन्हीं बारह पुस्तकों की दृष्टि से 'आदिकाल' का लक्षण निरूपण और नामकरण हो सकता है। इनमें से अंतिम दो तथा बीसलदेव रासो को छोड़कर शेष सब ग्रंथ वीरगाथात्मक ही हैं। अतः आदिकाल का नाम 'वीरगाथा काल' ही रखा जा सकता है। जिस सामाजिक या राजनैतिक परिस्थिति की प्रेरणा से वीरगाथाओं की प्रवृत्ति रही है उसका सम्यक् निरूपण पुस्तक में कर दिया गया है। मिश्रबंधुओं ने इस 'आदिकाल' के भीतर इतनी पुस्तकों की और नामावली दी है 1. भगवत गीता 2. वृद्ध नवकार 3. वर्तमाल 4. सहमति 5. पत्तालि 6. अनन्य योग 7. जंबूस्वामी रास 8. रैवतगिरि रास 9. नेमिनाथ चउपई 10. उवएस माला (उपदेशमाला)। इनमें से नं. 1 तो पीछे की रचना है, जैसा कि उसकी इस भाषा से स्पष्ट है: तेहि दिन कथा कीन मन लाई। सुमिरौं गुरु गोविंद के पाऊँ। अगम अपार है जाकर नाऊँ हर...

हिन्दी साहित्य का इतिहास, रामचंद्र शुक्ल, भाग 02

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हिन्दी साहित्य का इतिहास, रामचंद्र शुक्ल, भाग 02  पहले कालविभाग को लीजिए। जिस कालविभाग के भीतर किसी विशेष ढंग की रचनाओं की प्रचुरता दिखाई पड़ी है, वह एक अलग काल माना गया है और उसका नामकरण उन्हीं रचनाओं के स्वरूप के अनुसार किया गया है। इसी प्रकार काल का एक निर्दिष्ट सामान्य लक्षण बनाया जा सकता है। किसी एक ढंग की रचना की प्रचुरता से अभिप्राय यह है कि दूसरे ढंग की रचनाओं में से चाहे किसी (एक) ढंग की रचना को लें वह परिमाण में प्रथम के बराबर न होगी, यह नहीं कि और सब ढंगों की रचनाएँ मिलकर भी उसके बराबर न होंगी। जैसे यदि किसी काल में पाँच ढंग की रचनाएँ 10, 5, 6, 7, और 2 के क्रम में मिलती हैं, तो जिस ढंग की रचना की 10 पुस्तकें हैं, उसकी प्रचुरता कही जाएगी, यद्यपि शेष और ढंग की सब पुस्तकें मिलकर 20 हैं। यह तो हुई पहली बात। दूसरी बात है ग्रंथों की प्रसिद्धि। किसी काल के भीतर जिस एक ही ढंग के बहुत अधिक ग्रंथ प्रसिद्ध चले आते हैं, उस ढंग की रचना उस काल के लक्षण के अंतर्गत मानी जाएगी, चाहे और दूसरे ढंग की अप्रसिद्ध और साधारण कोटि की बहुत-सी पुस्तकें भी इधर-उधर कोनों में पड़ी मिल जाया करें। प्रस...

हिन्दी साहित्य का इतिहास, रामचंद्र शुक्ल

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प्रथम संस्करण का वक्तव्य हिंदी कवियों का एक वृत्तसंग्रह ठाकुर शिवसिंह सेंगर ने सन् 1833 ई. में प्रस्तुत किया था। उसके पीछे सन् 1889 में डॉक्टर (अब सर) ग्रियर्सन ने 'मॉडर्न वर्नाक्युलर लिटरेचर ऑव नार्दर्न हिंदुस्तान' के नाम से एक वैसा ही बड़ा कविवृत्त-संग्रह निकाला। काशी की नागरीप्रचारिणी सभा का ध्यान आरंभ ही में इस बात की ओर गया कि सहस्रों हस्तलिखित हिंदी पुस्तकें देश के अनेक आगों में, राजपुस्तकालयों तथा लोगों के घरों में अज्ञात पड़ी हैं। अतः सरकार की आर्थिक सहायता से उसने सन् 1900 से पुस्तकों की खोज का काम हाथ में लिया और सन्‌ 1911 तक अपनी खोज की आठ रिपोर्टों में सैकड़ों अज्ञात कवियों तथा ज्ञात कवियों के अज्ञात संर्थों का पता लगाया। सन् 1913 में इस सारी सामग्री का उपयोग करके मिश्रबंधुओं (श्रीयुत् पं श्यामबिहारी मिश्र आदि) ने अपना बड़ा भारी कविवृत्त-संग्रह 'मिश्रबंधु विनोद', जिसमें वर्तमान काल के कवियों और लेखकों का भी समावेश किया गया है, तीन भागों में प्रकाशित किया। Go to channel इधर जब से विश्ववि‌द्यालयों में हिंदी की उच्च शिक्षा का विधान हुआ, तब से उसके साहित्य के वि...

हिन्दी साहित्य से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न

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  हिन्दी साहित्य के लेखक और उनके ग्रन्थ हिंदी की कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां........... Go to channel रेती के फूल__________ :-रामधारी सिंह दिनकर अशोक के फूल________:- हजारी प्रसाद द्विवेदी कमल के फूल________ :-भवानी प्रसाद मिश्र शिरीष के फूल________:- हजारी प्रसाद द्विवेदी कागज के फूल________ :-भारत भूषण अग्रवाल जूही के फूल__________:- रामकुमार वर्मा गुलाब के फूल_________:-उषा प्रियवंदा नीम के फूल___________:- गिरिराज किशोर खादी के फूल__________:- हरिवंशरायबच्चन जंगल के फूल__________:- राजेंद्र अवस्थी दुपहरिया के फूल_______:- दुर्गेश नंदिनी डालमिया चिता के फूल__________ :-रामवृक्ष बेनीपुरी सेमल के फूल _________:-मारकंडे सुबह के फूल__________:- महीप सिंह रक्त के फूल____________ :-योगेश कुमार खादी के गीत__________:-सोहनलाल उसने कहा था_________ :-चंद्रधर शर्मा गुलेरी उसने नहीं कहा था ______:-शैलेश मटियानी तुमने कहा था ___________:-नागार्जुन मैंने कब कहा_____________ :-सर्वेश्वर दयाल सक्सेना तुमने क्यों कहा कि मैं सुंदर हूँ____:-यशपाल उसकी कहानी _____________:-महेंद्र वशिष्ट उसका विद्रोह...

ईदगाह, प्रेमचंद ईदगाह प्रेमचंद की कहानी

ईदगाह प्रेमचंद नोट:- और कहानियां पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें।  प्रेमचंद के कहानी संग्रह रमज़ान के पूरे तीस रोज़ों के बाद ईद आई है। कितना मनोहर, कितना सुहावना प्रभात है। वृक्षों पर अजीब हरियाली है, खेतों में कुछ अजीब रौनक़ है, आसमान पर कुछ अजीब लालिमा है। आज का सूर्य देखो, कितना प्यारा, कितना शीतल है, यानी संसार को ईद की बधाई दे रहा है। गाँव में कितनी हलचल है। ईदगाह जाने की तैयारियाँ हो रही हैं। किसी के कुरते में बटन नहीं है, पड़ोस के घर में सुई-तागा लेने दौड़ा जा रहा है। किसी के जूते कड़े हो गए हैं, उनमें तेल डालने के लिए तेली के घर पर भागा जाता है। जल्दी-जल्दी बैलों को सानी-पानी दे दें। ईदगाह से लौटते-लौटते दुपहर हो जाएगी।  तीन कोस का पैदल रास्ता, फिर सैकड़ों आदमियों से मिलना-भेंटना। दुपहर के पहले लौटना असंभव है।  लड़के सबसे ज़्यादा प्रसन्न हैं। किसी ने एक रोज़ा रखा है, वह भी दुपहर तक, किसी ने वह भी नहीं, लेकिन ईदगाह जाने की ख़ुशी उनके हिस्से की चीज़ है।  रोज़े बड़े-बूढ़ों के लिए होंगे, इनके लिए तो ईद है। रोज़ ईद का नाम रटते थे, आज वह आ गई।  अब जल्दी पड़ी है क...